भारत के संविधान से पंथ निरपेक्ष एवं समाजवाद शब्द को हटाना गैरजरूरी,वीरेंद्र कुमार जाटव
भारत के संविधान से पंथ निरपेक्ष एवं समाजवाद शब्द को हटाना गैरजरूरी,वीरेंद्र कुमार जाटव
सहारा सन्देश टाइम्स
आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले के द्वारा संविधान की प्रस्तावना से पंथनिरपेक्ष एवं समाजवाद शब्द हटाने संबंधी बयान के साथ ही एक नई बहस शुरू हो गई है। केंद्रीय मंत्री शिव राज चौहान ने भी इसके समर्थन में बयान जारी किया है। देश के समाचार पत्रों में इस खबर को सुर्खियां और टीवी न्यूज़ पर भी डिबेट में यह मुद्दा चर्चा का बना रहा। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भाजपा को संविधान विरोधी करार दिया है और चुनौती दी है कि बीजेपी के ऐसे मंसूबों को पूरा नहीं होने देंगे।
देश के विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे पर बीजेपी और आरएसएस के द्वारा दिए गए वक्तव्यों का हवाला देते हुए भाजपा को चौतरफा घेरने की कोशिश की है। राजनीतिक विश्लेषक बिहार विधानसभा चुनाव के संदर्भ में भाजपा के नए प्रयास के रूप में देख रहे है ताकि भाजपा इस बार बड़ी जीत की तरफ बढ़ सके और जनता दल यूनाइटेड की निर्भरता को भी कम कर सके।
देश में यह कोई पहला अवसर नहीं है जब संविधान की प्रस्तावना पर एवम संविधान के संदर्भ में चर्चा ना की गई हो। पूर्व में भी अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में संविधान समीक्षा पर चर्चा की गई थी, जिसका विपक्षी दलों ने खुलकर विरोध किया था। पिछले लोकसभा के चुनाव में भाजपा सांसद आनंद हेगड़े एवं उत्तर प्रदेश में बीजेपी के नेता लल्लू सिंह एवं अन्य नेताओं के द्वारा संविधान बदलने की चर्चा की गई थी। और यह चर्चा भी लोकसभा चुनाव में जोरों पर थी कि यदि बीजेपी के 400 सांसद चुनाव जीते हैं तो भारत के संविधान बदल दिया जाएगा।
इन चुनाव में इंडिया गठबंधन के नेताओं के द्वारा विशेष कर राहुल गांधी एवं अखिलेश यादव तेजस्वी यादव संविधान की प्रति को लेकर देश भर में लेकर घूमे थे और रैलियां की गई थी संविधान बचाने के संदर्भ में, जिसका असर यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ा नुकसान हुआ था इसके साथ राजस्थान में भी बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था।
बिहार चुनाव के समय 2015 में आरएसएस के सरसंचालक मोहन भागवत ने आरक्षण संबंधी बयान देकर बीजेपी को ही सांसत में डाल दिया था और जब विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था।
इस बार आर एस एस के द्वारा उठाए गए इस मुद्दे का असर भी इन चुनाव में पड़ने की संभावना है। यहां यह भी चर्चा जोरों पर है कि इस मुद्दे के कारण विधानसभा चुनाव में बीजेपी को तो फायदा जरूर हो सकता है लेकिन उसके सहयोगियों को इसका भरपूर लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि उनके विचारधारा बीजेपी के विचारधारा से बिल्कुल अलग मिलती है और यह सहयोगी दल अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण किसी भी ऐसे प्रयास का विरोध खुलकर करेंगे।
लोक जन शक्ति एवं जनता दल (यू) के नेताओं ने दत्तात्रेय हासबोले के इस वक्तव्य अमेरिका का विरोध किया है. आने वाले समय में देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा और जोर पकड़ेगा तब खुलासा होगा कि भाजपा अपने घटक दलों को कैसे इस मुद्दे पर मनाती है और जनता दल (यू) एवं सहयोगीयों के द्वारा बहुजन वैचारिक मतदाताओं को कैसे साथ पाएंगे।
वीरेंद्र कुमार जाटव, राजनीतिक विश्लेषक एवं राष्ट्रीय सचेतक समता सैनिक दल
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